शोर है बाहर अनेक,
पर सुनले तू सिर्फ एक,
चिल्ला रहा तुझमे है जो,
एक बार सोच तू !
शांत गहराई, विराट समंदर ,
न जाने कितने लेहरे है तेरे अंदर ,
उफान करने को तैयार जो ,
एक बार सोच तू !
अनगिणत लेहरे , उतार चढ़ाव सी ,
सच्चाई के चट्टान को देख रही ,
टकराने को आतुर है जो ,
एक बार सोच तू !
ठोस सत्य , तरल सोच ,
नकाशेगा तुझे हर एक खरोच ,
आज़ाद है आदि अंत से वो ,
एक बार सोच तू !
चिल्ला रहा तुझमे है जो,
एक बार सोच तू !
शांत गहराई, विराट समंदर ,
न जाने कितने लेहरे है तेरे अंदर ,
उफान करने को तैयार जो ,
एक बार सोच तू !
अनगिणत लेहरे , उतार चढ़ाव सी ,
सच्चाई के चट्टान को देख रही ,
टकराने को आतुर है जो ,
एक बार सोच तू !
ठोस सत्य , तरल सोच ,
नकाशेगा तुझे हर एक खरोच ,
आज़ाद है आदि अंत से वो ,
एक बार सोच तू !